योग एक आध्यात्मिक प्रक्रिया है जिसमें शरीर, मन और आत्मा को एक साथ जोड़ने का काम होता है। 'योग' शब्द संस्कृत के शब्द यजु धातु से बना है। योग शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग हमारे ऋग्वेद में मिलता है। तथा इसकी प्रक्रिया और धारणा हिंदू धर्म और बौद्ध धर्म और जैन धर्म में ध्यान से संबंधित है। योग एक मात्र ऐसी प्रक्रिया है, जिसके द्वारा शारीरिक और मानसिक दोनों तरीके से स्वस्थ रहा जा सकता हैं, योग को हमारे भारत में अनेकों शब्दो में परिभाषित किया गया है,
पंडित श्री रामचंद्र शुक्ला के अनुसार :
जीवन जीने की कला को ही योग माना जाता है।
कठोपनिषद में सबसे पहले योग शब्द उसी अर्थ में प्रयुक्त हुआ है जिस अर्थ में इसे आधुनिक समय में समझा जाता है। माना जाता है कि कठोपनिषद की रचना ईसापूर्व पांचवीं और तीसरी शताब्दी ईसापूर्व के बीच के कालखण्ड में हुई थी। पतञ्जलि का( योगसूत्र) योग का सबसे पूर्ण ग्रन्थ है। इसका रचनाकाल ईसा की प्रथम शताब्दी या उसके आसपास माना जाता है। हठ योग के ग्रन्थ 9वीं से लेकर 11वीं शताब्दी में रचे जाने लगे थे। इनका विकास तन्त्र से हुआ।
11 दिसम्बर 2014को संयुक्त राष्ट्र ने प्रत्येक वर्ष 21 जून को (विश्व योग दिवस)के रूप में मान्यता दी है।हिन्दू धर्म, जैन धर्म और बौद्ध धर्म में योग के अनेक सम्प्रदाय हैं, योग के विभिन्न लक्ष्य हैं तथा योग के अलग-अलग व्यवहार हैं। परम्परागत योग तथा इसका आधुनिक रूप विश्व भर में प्रसिद्ध हैं।
(योग और एक्सरसाइज(हठयोग) में अंतर):
जबकि परम्परागत योग का केन्द्र बिन्दु ध्यान है और वह सांसारिक लगावों से छुटकारा दिलाने का प्रयास करता है। पश्चिमी जगत में आधुनिक योग का प्रचार-प्रसार भारत से उन देशों में गये गुरुओं ने किया जो प्रायः स्वामी विवेकानन्द की पश्चिमी जगत में प्रसिद्धि के बाद वहाँ गये थे।
योग का महत्व( importance of yoga in Hindi):
हमारे जीवन में योग का अत्यंत महत्त्व है।ये हमे शारीरिक मानसिक और नैतिकता का पाठ योग के द्वारा संभव है।
1.शारीरिक महत्व:
योग का हमारे शारीरिक जीवन में अत्यंत महत्व है योग के 8 अंग होते हैं।इन 8अंगो के 4वे व 5वे अंग में योग और प्राणायाम की बात बताई गई है।जिसको करने से निम्न फायदे पाए जाते है
- शरीर को हस्ट –पुष्ट बनाया जा सकता है।
- अंग प्रत्यंग की क्षमता में वृद्धि होती है
- शरीर स्वस्थ व निरोग बनता है
- आसन और प्राणायाम के द्वारा शरीर के सारे अंग सुचारू रूप से कार्य करने लगते हैं
- शरीर में व्याप्त माल बाहर निकलता है शरीर स्वस्थ रहता है वात पित्त कफ संतुलित रहता है
2.मानसिक महत्व:
योग के द्वारा शारीरिक स्वास्थ्य के साथ-साथ मानसिक स्वास्थ्य को भी प्राप्त किया जा सकता है आज की आधुनिक युग में मानसिक रोग भयावह रूप ले रही है जिसका इलाज विज्ञान करने में असमर्थ है। इस तनाव भरी परिस्थिति और रोग से निपटने के लिए योग एक सफल वह कारीगर तरीका है। मन और शरीर का एक घनिष्ठ संबंध है अगर मन सही है तो शरीर भी सही है।- योग के द्वारा मन को शांत किया जा सकता है और मन की चंचलता को स्थिर रख सकते हैं
- योग के द्वारा स्मरण शक्ति में वृद्धि कर सकते हैं
- बच्चे के मानसिक विकास के लिए प्राणायाम अत्यंत आवश्यक है
3.आध्यात्मिक महत्व:
मनुष्य जीवन का मुख्य उद्देश्य होता है मोक्ष की प्राप्ति करना, इस महान लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए मन एकाग्र होना अत्यंत आवश्यक है। अर्थात मन ही मोक्ष और बंधन का कारण है अर्थात जिओ के द्वारा हम अपने मन को एकाग्र करके ईश्वर की ओर ध्यान करके मोक्ष को प्राप्त कर सकते हैं।
4.नैतिक महत्व:
योग्य व्यक्ति के नैतिक मूल्यों के सद्गुणों में वृद्धि करने के लिए सहायक है। योग साधना के द्वारा ही हम अपने इंद्रियों पर संयम कर अच्छी आदतें और अच्छी विचारों को अपने जीवन में ला सकते हैं।
5.चारित्रिक महत्व:
योग विद्या एक आदर्श चरित्र व उच्च चरित्र के निर्माण में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, योग के लगातार अभ्यास से व्यक्ति के व्यक्तित्व का निर्माण होता है।
6.आर्थिक महत्व:
मानव जीवन में योग का आर्थिक स्तर से सीधा संबंध है, एक स्वस्थ आदमी ही अपने आर्थिक स्तर को बेहतर कर सकता है, जो व्यक्ति शारीरिक रूप से कमजोर है उसका आधा आय तो उसकी दवा में चली जाती है और वह अपनी कार को ठीक ढंग से भी नहीं कर पाता है। लगातार बीमार रहने से उसे अपने छुट्टी लेनी पड़ती है जिसका प्रभाव उनके आय पर भी पड़ता है।
योग के प्रकार (Types of Yoga in Hindi):
योग के मुख्य चार प्रकार होत हैं। राज योग, कर्म योग, भक्ति योग और ज्ञान योग। कर्म योग के अनुसार हर कोई योग करता है।
राज योग :
राज योग यानी राजसी योग। इसमें ध्यान महत्वपूर्ण है। इसके आठ अंग हैं। इनमें यम (शपथ), नियम (आचरण-अनुशासन), आसन (मुद्राएं), प्राणायाम (श्वास नियंत्रण), प्रत्याहार (इंद्रियों का नियंत्रण), धारण (एकाग्रता), ध्यान (मेडिटेशन) और समाधि (परमानंद या अंतिम मुक्ति)।
कर्म योग :
हर कोई इस योग को करता है। कर्म योग ही सेवा का मार्ग है। कर्म योग का सिद्धांत है कि जो आज अनुभव करते हैं वह हमारे कार्यों से भूतकाल में बदलता जाता है। जागरूक होने से हम वर्तमान से अच्छा भविष्य बना सकते हैं। स्वार्थ और नकारात्मकता से दूर होते हैं।
भक्ति योग :
भक्ति का मार्ग से सभी की स्वीकार्यता और सहिष्णुता पैदा होता है। इसमें भक्ति के मार्ग का वर्णन है। सभी के लिए सृष्टि में परमात्मा को देखकर, भक्ति योग भावनाओं को नियंत्रित करने का एक सकारात्मक तरीका है।
ज्ञान योग :
अगर भक्ति को मन का योग मानें तो ज्ञान योग बुद्धि का योग है। यह ऋ षि या विद्वानों का रास्ता है। इसमें ग्रंथों और ग्रंथों के अध्ययन के माध्यम से बुद्धि के विकास की आवश्यकता होती है। ज्ञान योग को सबसे कठिन माना जाता है और साथ ही साथ सबसे प्रत्यक्ष होता है।
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